शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

कब यहाँ दर्द का हाल समझा गया


बे जरूरत इसे ख्याल  समझा गया
कब यहाँ दर्द का हाल समझा गया

बात जब भी हुई मैंने दिल की कही
क्यों उसे शब्द का जाल समझा गया

महफ़िलें  आपकी  जगमगाती  रहें
आम इंसान बदहाल  समझा गया

हमने सौंपा था ये देश चुनकर उन्हें
मेरे चुनने को ही ढाल समझा गया

हालतें इतनी ज्यादा बिगड़ती न पर
देश को मुफ़्त का माल समझा गया

हाल  'आनंद'  के यूँ  बुरे  तो  न  थे
हाँ उसे जी का जंजाल समझा गया


- आनंद
१९-१०-२०१२

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  2. क्या बात है आनंद जी

    आज व्यंग्य में देश के लिए भी लिख दिया ......बहुत खूब

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