बे जरूरत इसे ख्याल समझा गया
कब यहाँ दर्द का हाल समझा गया
बात जब भी हुई मैंने दिल की कही
क्यों उसे शब्द का जाल समझा गया
महफ़िलें आपकी जगमगाती रहें
आम इंसान बदहाल समझा गया
हमने सौंपा था ये देश चुनकर उन्हें
मेरे चुनने को ही ढाल समझा गया
हालतें इतनी ज्यादा बिगड़ती न पर
देश को मुफ़्त का माल समझा गया
हाल 'आनंद' के यूँ बुरे तो न थे
हाँ उसे जी का जंजाल समझा गया
- आनंद
१९-१०-२०१२
वाह ... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंwaah...
जवाब देंहटाएंbahut badhiya...
anu
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंक्या बात है आनंद जी
जवाब देंहटाएंआज व्यंग्य में देश के लिए भी लिख दिया ......बहुत खूब
Badee hee pate kee baat kahee hai! Bahut khoob!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...बहुत खूब...|
जवाब देंहटाएंas usual... u r superb Anand ji
जवाब देंहटाएंregards