अभी निगाह में कुछ और ख्व़ाब आने दो
हजार रंज़ सही मुझको मुस्कराने दो
तमाम उम्र दूरियों में काट दी हमने
कभी कभार मुझे पास भी तो आने दो
बहस-पसंद हुईं महफ़िलें ज़माने की
मुझे सुकून से तनहाइयों में गाने दो
सदा पे उसकी तवज़्ज़ो का चलन ठीक नहीं
ग़रीब शख्स है उसको कथा सुनाने दो
किसी की भूख मुद्दआ नहीं बनी अब तक
मगर बनेगी शर्तिया वो वक़्त आने दो
यकीन मानिए दुनिया मुझे भी समझेगी
अभी नहीं, तो जरा इस जहाँ से जाने दो
क़र्ज़ 'आनंद' गज़ल का भी नहीं रक्खेगा
अभी बहुत है जिगर में लहू, लुटाने दो
- आनंद द्विवेदी
जुलाई ११, २०१२
किसी की भूख मुद्दआ नहीं बनी अब तक
जवाब देंहटाएंमगर बनेगी शर्तिया वो वक़्त आने दो
यकीन मानिए दुनिया मुझे भी समझेगी
अभी नहीं, तो जरा इस जहाँ से जाने दो
वाह... लाजवाब कर दिया आपके शब्दों ने... शुक्रिया
शुक्रिया संध्या जी ! आभार !!
जवाब देंहटाएंवाह....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल...
यकीन मानिए दुनिया मुझे भी समझेगी
अभी नहीं, तो जरा इस जहाँ से जाने दो
बहुत खूब आनंद जी.
अनु
बहुत ही बढ़िया गजल....
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत ही खूबसूरत रचना आभार
जवाब देंहटाएंकिसी की भूख मुद्दआ नहीं बनी अब तक
जवाब देंहटाएंमगर बनेगी शर्तिया वो वक़्त आने दो
यकीन मानिए दुनिया मुझे भी समझेगी
अभी नहीं, तो जरा इस जहाँ से जाने दो
वाह ... लाजवाब करती ये पंक्तियां
bahut khub
जवाब देंहटाएंआप सभी मित्रों का तहेदिल से शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंअब तो तारीफ के सब शब्द भी खत्म ही हैं
जवाब देंहटाएंमुझे अब मेरी गज़ल गाने-गुनगुनाने दो....!!
लाजवाब....!!