यहीं
इसी
हर सिंगार के नीचे
जब धवल पुष्प
एक एक कर झर रहे थे
हमारे तन पर .
हमारे चारों तरफ ,
तुम
मेरे सीने पर
अपनी उँगलियों से
लिख रही थी
मेरा ही नाम
यूँ ही !
प्रकृति
एकदम मौन थी
जैसे अभी शब्द की
उत्पत्ति ही नही हुई हो
समय भी
तनिक सा रुक गया था
मानो वो भी
साक्षी होना चाह रहा था
इस परमात्मिक प्रेम का !
चाँद
टकटकी लगाए
देख रहा था
हमारे
मोद को
मिलन को
प्रेम को ,
हमारी डूबन को
हमारी समाधि को !
सहसा
चाँद ने
शुभ्र चांदनी की
एक चादर
डाल दिया हमारे ऊपर
और
मुस्कराकर
अपनी मंजिल को चल पड़ा !
धीरे धीरे ...
हम ढक गये
हरसिंगार के श्वेत पुष्पों से
देखो न
हमारी सांसें
अभी भी
वैसी ही
महक रही हैं !!
-आनंद द्विवेदी २८/१०/२०११
पूरी कहानी कह डाली आपने हरसिंगार की खूबसूरती सी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
Nazakat se labrez,bhavuk kavita!
जवाब देंहटाएंLovely :)
जवाब देंहटाएंहरसिंगार सी भीनी कविता.
जवाब देंहटाएंधीरे धीरे ...
जवाब देंहटाएंहम ढक गये
हरसिंगार के श्वेत पुष्पों से
देखो न
हमारी सांसें
अभी भी
वैसी ही
महक रही हैं !!......bahut hi touchy ....
yun hi mahakti rahe sansen jab tak chalti rahen....aur fir ye mahak rooh ke sang is lok se us lok tak jaye .....har lok mehkaye .....:)) romantic one ....
बहुत सुन्दर और कोमल से एहसास लिए खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंमिलन को बेहतर भावों के साथ अभिव्यक्त किया है ........खुबसुरत अहसास
जवाब देंहटाएंआज 29- 10 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
एक खुबसूरत अहसास....
जवाब देंहटाएंमैने तो कल ही कह दिया सब कुछ अब और क्या कहूँ आनन्द जी……………मेरे मन के भावो को जैसे आपने शब्द दे दिये।
जवाब देंहटाएंbahut hi pyaari kavita !!!
जवाब देंहटाएंफूल हरसिंगार के रात महकती रही..
जवाब देंहटाएंसाथ-साथ हम भी...
खूबसूरत.....
***punam***
tumhare liye..
bas yun..hi..
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