सोमवार, 17 दिसंबर 2012

गैर को गैर समझ

गैर को गैर समझ यार को यार समझ
रब किसी को न बना प्यार को प्यार समझ

वक़्त वो और था जब हम थे कद्रदानों में
ये दौर और है इसमें मुझे  बेकार समझ

तू जो क़ातिल हो भला कौन जिंदगी माँगे
जिस तरह चाहे मिटा, मुझको तैयार समझ

बावरे मन ! तेरी दुनिया में कहाँ निपटेगी
वक्त को देख जरा इसकी रफ़्तार समझ

तेरा निज़ाम है, मज़लूम को  भी जीने दे
देर से ही सही इस बात की दरकार समझ

धूप या छाँव तो  नज़रों का खेल है प्यारे
दर्द का गाँव ही 'आनंद' का घर-बार समझ

- आनंद







रविवार, 16 दिसंबर 2012

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी ...


किसी की हँसी में शामिल हो जाऊं
याकि उदास हो जाऊं किसी को उदास जानकार,
ढेर सारी वो बातें सुनूं बैठकर
जिन में मैं कहीं नहीं रहूँ
याकि शामिल हो जाऊं एक लम्बी चुप्पी में,
रो पडू किसी को नाराज करके
याकि हंस दूं जब कोई मुझे नाराज़ समझे,
छुट्टी के दिन भी फोन को दिन भर चिपकाए घूमूं,
यह जानते हुए भी कि कोई फोन या मैसेज नहीं आएगा,
हज़ार उपाय करूँ किसी की नज़र में अच्छा होने के लिए
याकि बुरा हो जाऊं किसी की नज़र में
मगर उसका बुरा न होने दूं,
इतना पास रहूँ किसी के कि आदत बन जाऊं
याकि इतना दूर हो जाऊं कि बन जाऊं याद,
 
ऐसी ही अनगिनत छोटी-छोटी चाहतें लिए एक दिन
मर जाऊंगा
किसी बेहद आम इंसान की तरह 
ख़ामोशी से बिलकुल गुमनाम....! 

-आनंद  

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

मेरी हार


तुम्हारी जीत
हो सकती है
पर मेरा हारना नहीं है
कोई इत्तेफ़ाक,

हारना मेरा चुनाव है
बचपन में हारा साथ खेलने वालों से
स्कूल में ट्यूशन पढ़ने वाले साथियों से
घर में जब तक और कोई नहीं था तब तक माँ से ही हारता रहा
कभी कभार दिल भी हारा गाँव-गली में,
जरूरतों से हारकर बार-बार विस्थापित हुआ
मालिक से हारा
मकान मालिक से हारा
सरकार से हारा
चाटुकार से हारा
साहूकार से हारा
सच्चों से हारा
लुच्चों से हारा
बच्चों से हारा
मंहगाई से हारा
जग हंसाई से हारा  ...
एक लंबा इतिहास है मेरे हारने का
तुम न भी जीतते
तो भी मैं हारता
बस फर्क यही है कि इस बार खुद को ही हार गया मैं...

क्योंकि जब तुम मिले
कुछ और नहीं बचा था मेरे पास सिवाय
मेरे अपने होने के अहसास के... !

 - आनंद

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

भाव की झंकार ही संगीत है


मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा

मौन है रजनी गहन तम मौन है
मौन है पीड़ा जलन भी मौन है
शब्द से ध्वनि से जगत को क्या रिझाऊं
आत्मा है मौन प्रियतम मौन है

जो अमर है वो मरण से क्या डरेगा
मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा..

शब्द भी है नाद भी है, आत्मा भी
नृत्य करता अहिर्निशि परमात्मा भी
भाव की झंकार ही संगीत है
अब अकेले का जगत ही मीत है

शम्भु कोई विष-वरण से क्या डरेगा
मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा

मैं नही जानूँ कुमारग क्या बला है
कब कोई दरवेश मारग पर चला है
कोई भी मंजिल नहीं इच्छित हमारी
दूरियाँ लगतीं हृदय को बहुत प्यारी

पथिक कोई भी, डगर से क्या डरेगा
मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा

-  आनंद

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

डर लग रहा है दोस्तों का प्यार देखकर

इंसान को हर सिम्त से लाचार देखकर
हैराँ हूँ आज वक्त की रफ़्तार देखकर

माँ रो पड़ी ये सोचकर जाए वो किस तरफ
आँगन के बीच आ गयी दीवार देखकर

माली के हाथ में नहीं महफूज़ अब चमन
डाकू भले हैं, मुल्क की सरकार देखकर

दुनिया के सितम का तो खैर कोई ग़म नहीं
डर लग रहा है दोस्तों का प्यार देखकर

'आनंद' शाम तक तो बड़ा खुशमिजाज़ था
सहमा  हुआ है आज  का अख़बार देखकर

- आनंद