सोमवार, 10 दिसंबर 2012

मेरी हार


तुम्हारी जीत
हो सकती है
पर मेरा हारना नहीं है
कोई इत्तेफ़ाक,

हारना मेरा चुनाव है
बचपन में हारा साथ खेलने वालों से
स्कूल में ट्यूशन पढ़ने वाले साथियों से
घर में जब तक और कोई नहीं था तब तक माँ से ही हारता रहा
कभी कभार दिल भी हारा गाँव-गली में,
जरूरतों से हारकर बार-बार विस्थापित हुआ
मालिक से हारा
मकान मालिक से हारा
सरकार से हारा
चाटुकार से हारा
साहूकार से हारा
सच्चों से हारा
लुच्चों से हारा
बच्चों से हारा
मंहगाई से हारा
जग हंसाई से हारा  ...
एक लंबा इतिहास है मेरे हारने का
तुम न भी जीतते
तो भी मैं हारता
बस फर्क यही है कि इस बार खुद को ही हार गया मैं...

क्योंकि जब तुम मिले
कुछ और नहीं बचा था मेरे पास सिवाय
मेरे अपने होने के अहसास के... !

 - आनंद

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

भाव की झंकार ही संगीत है


मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा

मौन है रजनी गहन तम मौन है
मौन है पीड़ा जलन भी मौन है
शब्द से ध्वनि से जगत को क्या रिझाऊं
आत्मा है मौन प्रियतम मौन है

जो अमर है वो मरण से क्या डरेगा
मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा..

शब्द भी है नाद भी है, आत्मा भी
नृत्य करता अहिर्निशि परमात्मा भी
भाव की झंकार ही संगीत है
अब अकेले का जगत ही मीत है

शम्भु कोई विष-वरण से क्या डरेगा
मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा

मैं नही जानूँ कुमारग क्या बला है
कब कोई दरवेश मारग पर चला है
कोई भी मंजिल नहीं इच्छित हमारी
दूरियाँ लगतीं हृदय को बहुत प्यारी

पथिक कोई भी, डगर से क्या डरेगा
मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा

-  आनंद

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

डर लग रहा है दोस्तों का प्यार देखकर

इंसान को हर सिम्त से लाचार देखकर
हैराँ हूँ आज वक्त की रफ़्तार देखकर

माँ रो पड़ी ये सोचकर जाए वो किस तरफ
आँगन के बीच आ गयी दीवार देखकर

माली के हाथ में नहीं महफूज़ अब चमन
डाकू भले हैं, मुल्क की सरकार देखकर

दुनिया के सितम का तो खैर कोई ग़म नहीं
डर लग रहा है दोस्तों का प्यार देखकर

'आनंद' शाम तक तो बड़ा खुशमिजाज़ था
सहमा  हुआ है आज  का अख़बार देखकर

- आनंद 

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

कोई आवाज़ न आये तो खुशी होती है

शाम तनहा चली जाए तो खुशी होती है
इन दिनों  कोई रुलाये तो खुशी होती है

उम्र भर उसको पुकारा करूँ दीवानों सा
कोई आवाज़ न आये तो खुशी होती है

तेरे आगोश के जंगल में हिना की खुशबू
आजकल याद न आये तो खुशी होती है

दोस्ती दर्द से ऐसी निभी कि पूछो मत
अब खुशी पास न आये तो खुशी होती है

चाहे जीते जी लगाये या बाद मरने के
आग़ अपना ही लगाये तो खुशी होती है

जहाँ में कोई सबक मुफ़्त नहीं मिलता है
जिंदगी फिर भी सिखाए तो खुशी होती है

ख़्वाब 'आनद' के टूटे तो  इस कदर टूटे
अब कोई ख़्वाब न आये तो खुशी होती है

-  आनंद


सोमवार, 26 नवंबर 2012

आना-पाई हिसाब आया है



मेरे हिस्से  अज़ाब  आया  है
और  उनपे  शबाब आया है

एक क़तरा भी धूप न लाया
बेवजह आफ़ताब  आया है

पहले खत में नखत निकलते थे
बारहा   माहताब  आया  है

खुशबुएँ  डायरी से गायब हैं
हाथ, सूखा गुलाब आया है

मुझको इंसान बुलाना उनका
क्या कोई  इंकलाब  आया है

अब वहां कुछ नहीं बचा मेरा
आना-पाई हिसाब आया है

मेरा मुंसिफ  मेरे गुनाहों की
लेके मोटी किताब आया है

पहले 'आनंद' था ज़माने में
धीरे-धीरे हिज़ाब  आया है

- आनंद