सोमवार, 5 अगस्त 2013

दिल्ली की दौड़ ....

हमेशा सुना था कि कोई इंसान पूर्ण नहीं होता ...
सब में कुछ न कुछ कमियां होती ही हैं .... ऐसा क्यों करता है ऊपर वाला ? क्यों हमारे कुछ टुकड़े.... हमारे अपने टुकड़े इधर उधर फेंक देता है ... जिसे हम जीवन भर ढूंढते रहते हैं ... सब कुछ होते हुए भी कुछ न कुछ सबका होता है जो नहीं होता अपने पास .......... ! कोई पा भी जाता है जल्द ही उन अंशों को ...जल्द पा जाता है .... और किसी का नसीब 
 अब ये मत कहना कि तलाश नहीं होती है सब को होती है बस रूप अलग अलग होते हैं किसी को पैसा किसी को प्रेम किसी को ज्ञान किसी को मोक्ष मगर हर बंदा शामिल है इस बिरादरी में ... 

अब जरा सी बात इज़ाज़त हो तो हम अपनी दिल्ली वालों की करलें .........
हर बंदा न केवल ख़ोज रहा है बल्कि दौड़ रहा है ...ऐसा भागता हुआ शहर आपको दुनिया में शायद ही कहीं मिले (केवल अनुमान के आधार पर क्योंकि मैं विश्वभ्रमण करके नहीं लौटा हूँ  ) .... 

यहाँ मेट्रो का गेट खुलता है तो लोग दौड़ते हुए उतरते हैं ...
सीढियां या एस्कलेटर तक दौड़ते हुए पहुँचते हैं ... अन्दर घुसने वाले भी दौड़ कर मेट्रो में दाखिल होते हैं ...रेड लाइट पर गाड़ी रोकते हैं तो लगभग सामने से पास होने वाले ट्रेफ़िक का आधा रास्ता रोक लेते हैं ... रेडलाईट होने के बाद भी मजबूरी में रुकते हैं और पीली लाइट होते ही चल पड़ते हैं .. बस में दौड़कर चढ़ते हैं उतर कर भी लगभग दौड़ लगा देते हैं .... लोग बसों में या अपनी गाड़ियों में आपको नाश्ता तक करते हुए अक्सर मिल जायेंगे..... कभी दो पल आराम से कहीं खड़े होकर यह दौड़ देखिये .....
मैं भी इसी का हिस्सा हूँ यारों ... पर क्यों ... मेरा टुकड़ा .... अंश कहाँ है ?

- आनंद 

रविवार, 4 अगस्त 2013

दर्द दोस्त

तुम .......!
कभी भी बहुत प्रिय नहीं रहे
मगर ईमानदार रहे हमेशा
साथ रहे
कभी नाराज़ नहीं हुए
कभी धोखा नहीं दिया
कभी बिना वजह ज्ञान नहीं दिया
अगर पल दो पल कभी इधर उधर गए भी तो सांझ होने से पहले लौट आये
तुम जैसा निस्वार्थ साथी कोई और नहीं मिला
ऐ मेरे प्यारे दर्द
मित्रता को याद करने वाले आज के इस दिन
तुझे एक सलाम तो बनता है
तुम साथ हो तो लगता है कि
हाँ मेरा अस्तित्व है अभी
आओ अब से
इस सम्बन्ध को और प्रगाढ़ करते हैं
शुभकामनायें मित्र !

- आनंद 

शनिवार, 3 अगस्त 2013

महसूस करता हूँ

महसूस  करता हूँ वैसे ही
तुम्हें मैं
जैसे जीवन महसूसता है
धरती को
जैसे धरती महसूस करती है जल वायु ऊष्मा और आकाश को
नहीं जानता कि जीवन विहीन धरती कैसी होगी
पर धरती के बिना जीवन अकल्पनीय है
जैसे अकल्पनीय है बादल के बिना बरसात
प्रकाश के बिना सूर्य
गुस्से के बिना तुम  :)
और तुम्हारे बिना मैं और मेरी कवितायें !

एक दिन, जब चाँद सालाना छुट्टियाँ मना रहा होगा ...
मध्यरात्रि में सूरज होगा  ठीक सर के ऊपर
तारे उछल कूद रहे होंगे उसकी ठंढी सतह पर
इससे पहले कि सूरज सुबह की पाली के लिए  गरम होना शुरू हो
तुम  आ जाना चुपके से
साथ चलेंगे घूमने हकीक़त के आसमान तक
क्योंकि सपनों पर अब बहुत ज्यादा यकीन करना
खुद को धोखा देना लगता है
तुम सूरज के पेट में गुदगुदी करना
मैं करूंगा रखवारी - इन खुशी भरे अद्भुत पलों की ...
कम्बख्त बार बार हाथ में आकर छटक जाते हैं

इस बार तुम वहाँ तक चलोगी न ?

- आनंद


शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

ये कैसा मौसम आया है....


ये कैसा मौसम आया है, दिल कैसा सौदाई है
पाकर मुझे अकेला फिर से यादों की बन आई है

अरसे बाद हुआ है झगड़ा मेरा ऊपर वाले से
अरसे बाद लगा है मेरी किस्मत ही तन्हाई है

तेरे दर पर भी वैसा हूँ जैसा अपने घर में था
सारे सपने पूछ रहे हैं, ये कैसी पहुनाई है ?

कुआँ बावली झरने नदियाँ  ताल पोखरे हरियाली
जग में जितना कुछ सुन्दर है सब तेरी रानाई है

ये धरती जितनी भोला की उतनी ही जुम्मन की है
मत इनको मज़हब में बांटो ये बेकार लड़ाई है

देश बेंच लेने की खातिर सारे गले मिल रहे हैं
कितना एका है चोरों में,  देता साफ़ दिखाई है

बात बात में हंसी ठहाके, बेफ़िक्री मस्ती वाला
वो 'आनंद' खो गया यारों, ये उसकी परछाई है

- आनंद


मंगलवार, 30 जुलाई 2013

प्रेम के बाद ...


दोनों ही तरफ से
अफ़सोस व्यक्त कर दिया गया था
'प्रेम' के बाद। ….
फिर चला दूसरे को बुरा बताने का दौर
एक दूसरे के दोस्तों ने
आनंद लिया निंदा रस का …
सहानुभूति जताई और ऐसे 'वक़्त' में खूब साथ दिया…।

किसी ने जाना कि
गरीब से प्रेम एक बड़ी भूल थी
(वस्तुतः अब सारा जोर इस पर था की उसे प्रेम न कहा जाए)
इस क्लास के लोग प्रेम को नहीं समझते
बनते हैं उन्मुक्तता में रूकावट

किसी ने जाना कि
महान लोग कितने खोखले होते हैं अन्दर से
रहते हैं हमेशा एक नए शिकार की तलाश में
प्रेम के नाम पर।
साझा हितों के लिए एक समूह में रहते हैं
जैसे बाबाओं का झुण्ड
गद्दीधर महंत देते हैं प्रेम पर प्रवचन
चेले चेलियाँ करती हैं जय-जय कार
जय  सात्विक प्रेम
जैसे व्रत में फलाहार !!

- आनंद