गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

अमन की बातें न कर तू


अमन की बातें न कर तू, भले चिंगारी न देख 
पूरा गुलशन देख भाई, एक ही क्यारी न देख

नज़र में मंज़िल है तो फिर, राह दुश्वारी न देख 
हौसले भी देख अपने, सिर्फ लाचारी न देख

मशवरा करके कभी तूफ़ान भी आये  हैं क्या
बाजुओं पर भी यकीं कर, सारी तैयारी न देख

ऐ मेरे शायर हक़े-माशूक़ की खातिर ही लड़
इल्तज़ा है वक़्त की तू खौफ़ सरकारी न देख

आग भरदे ग़ज़ल में, अशआर को बारूद कर
भूल जा काली घटा अब आँख कजरारी न देख

देखना ही ख्वाब हो तो जुल्म से लड़ने के देख
अपनी दुनिया खुद बदल 'आनंद' की बारी न देख

- आनंद


मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

लाठियाँ खा-खा के बच्चों ने हमें दिखला दिया

कहूँ मैं कैसे मोहब्बत की कहानी दोस्तों
दाँव पर जब लग गयी है जिंदगानी दोस्तों

साफ कहता हूँ कि मैं अपने लिये चिल्ला रहा
मेरे घर में भी तो  है बेटी सयानी दोस्तों

जुल्म खुद हैरान है इस जुल्म का ढंग देखकर
पर नहीं सरकार की आँखों में पानी दोस्तों

लाठियाँ खा-खा के बच्चों ने हमें दिखला दिया
कम नहीं है आज भी जोशो-जवानी दोस्तों

हम बदलकर ही रहेंगे सोच को, माहौल को,
हो गयी कमज़ोर दहशत हुक्मरानी दोस्तों

झांक ले 'आनंद' तू अपने गरेबाँ में भी अब
वरना रह जायेंगी सब बातें जुबानी दोस्तों

 - आनंद



गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

आज हर मर्द ही शक़ में शुमार है यारों .

इस क़दर गिर गया अपना मयार है यारों
आज हर मर्द ही शक़ में शुमार है यारों

शाम होते ही सहम जाती है बेटी मेरी
शहर है  या कोई  ख़ूनी दयार  है यारों

कौन जाने किधर से चीख उठेगी अगली
ज़ेहन में आजकल दहशत सवार है यारों

गुनाहगार के संग सोच भी सूली पाए
मेरा जरा सा अलहदा विचार है यारों

हर तरफ शोर है गुस्सा है भले लोगों में
गोया सागर में शराफत का ज्वार है यारों 

आइये कर सकें भरपाई तो करदें उसकी 
क़र्ज़ बहनों का अभी तक उधार है यारों

 - आनंद

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

हादसों की दिल्ली ... सितम की राजधानी

जीवन रक्षक मशीन के सहारे
सफदरजंग अस्पताल की आई सी यू में
कुछ घंटे या फिर कुछ दिन और जियेगी एक लड़की
फिर या तो वह 'ठीक' हो जायेगी
या मर जायेगी


एक लड़की जो इस महान देश की ऐतहासिक राजधानी के
सबसे समृद्द इलाकों में से एक में
निकल पड़ी रात को घर से
बिना सायरन बजाती हुई गाड़ियों के काफिले के,
अकेले निकल पड़ी
केवल एक अपने पुरुष साथी के साथ
जुर्रत तो देखिये उस लड़की की
उसने समझा इस देश की राजधानी को शायद अपने गांव अपने घर की तरह सुरक्षित 
हर कोने हर नुक्कड़ हर संभव जगह पर घात लगाये बैठे  रहने वाले नर पिसाच
शायद छः थे वो
पैरामेडिकल कोर्स कर चुकी वह बहादुर लड़की जरूर लड़ी होगी
जी जान से किया होगा उसने विरोध
पर पहले उसे अधमरा कर दिया गया उसके साथी को भी लहूलुहान कर दिया गया
फिर एक -एक करके सब ने सिद्ध किया अपना पुरुष होना
और फिर जब दोनों हो गए अचेत
नहीं सह पाये अत्याचार
तो उन्हें मरा समझकर , चलती बस से ही
फेंक दिया गया एक फ्लाईओवर से नीचे ।

कैसी लगी यह कहानी
दर्दनाक है न ?
तो एक काम करो अपन-अपना कंप्यूटर ऑन करो
एक जगह है फेसबुक
वहाँ अपनी छवि चमकाते हैं हम सब मिलकर
देखते हैं कौन महिलाओं का सबसे बड़ा हितैषी साबित होता है
सामने रखी गरमागरम चाय सिप करते हुए
मुद्दे की गंभीरता से परचित कराते हैं 
देश और समाज को
आखिर हम जागरूक इंसान हैं भई !

जे एन यू के लड़के हैं न 
वो कर तो रहे हैं विरोध प्रदर्शन
"अब क्या करें जान दे दें क्या"
"और फिर मेरे जान देने से मसला हल हो जाए जान भी दे दें"

जान तो देती रहेंगी 
बच्चियां
औरतें 
अभी और न जाने कब तक ...
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’

आक्क थू
हाँ थूकता हूँ मैं
हम सबके ऊपर
अपने ऊपर भी !

-आनंद  

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

गैर को गैर समझ

गैर को गैर समझ यार को यार समझ
रब किसी को न बना प्यार को प्यार समझ

वक़्त वो और था जब हम थे कद्रदानों में
ये दौर और है इसमें मुझे  बेकार समझ

तू जो क़ातिल हो भला कौन जिंदगी माँगे
जिस तरह चाहे मिटा, मुझको तैयार समझ

बावरे मन ! तेरी दुनिया में कहाँ निपटेगी
वक्त को देख जरा इसकी रफ़्तार समझ

तेरा निज़ाम है, मज़लूम को  भी जीने दे
देर से ही सही इस बात की दरकार समझ

धूप या छाँव तो  नज़रों का खेल है प्यारे
दर्द का गाँव ही 'आनंद' का घर-बार समझ

- आनंद