अपने समय की चाल से आगे निकल गया
इन्सान जरूरत की मशीनों में ढल गया
हम इंतज़ार ओढ़ के सोये थे ठाठ से
भगदड़ में कोई ख़्वाब हमारे कुचल गया
बाहर से ठीक ठाक है, अंदर लहूलुहान
ये देश मेरा गुड़ भरा हंसिया निगल गया
आता कहाँ से ज़िन्दगी के खेल का मज़ा
जब जब मैं जीतने लगा पाला बदल गया
दोनों ने ख़्वाब वस्ल के देखे ये कम है क्या
अब क्या करें जो वस्ल का मौसम निकल गया
अपने ही भरमजाल में उलझी थी ज़िन्दगी
फ़ुर्सत मिली तो उम्र का सूरज ही ढल गया
ये क्या कि बात बात में आँसू छलक पड़ें
'आनंद' तेरा दर्द तमाशा निकल गया
- आनंद
इन्सान जरूरत की मशीनों में ढल गया
हम इंतज़ार ओढ़ के सोये थे ठाठ से
भगदड़ में कोई ख़्वाब हमारे कुचल गया
बाहर से ठीक ठाक है, अंदर लहूलुहान
ये देश मेरा गुड़ भरा हंसिया निगल गया
आता कहाँ से ज़िन्दगी के खेल का मज़ा
जब जब मैं जीतने लगा पाला बदल गया
दोनों ने ख़्वाब वस्ल के देखे ये कम है क्या
अब क्या करें जो वस्ल का मौसम निकल गया
अपने ही भरमजाल में उलझी थी ज़िन्दगी
फ़ुर्सत मिली तो उम्र का सूरज ही ढल गया
ये क्या कि बात बात में आँसू छलक पड़ें
'आनंद' तेरा दर्द तमाशा निकल गया
- आनंद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन डॉ. अमरनाथ झा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंवाह ! हर शेर दर्द में डूबा हुआ..
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