हमारा हाल भी अब और ही सुनाये मुझे
सितम करे तो कोई इस तरह सताए मुझे
न जाने कौन सा ये श्राप है दुर्वासा का
शहर से मेरे वो गुजरे तो भूल जाए मुझे
दर्द की बात पुरानी हुई दुनिया वालों
अब वो रूठे तो बड़ी देर तक हँसाये मुझे
मैं उसका अपना हूँ अक्सर वो बोल देता है
मगर ये बात वो होठों से न बताये मुझे
ज़िंदगी गर कोई मंज़िल है तो मिल जाएगी
हर कदम आज भी चलना वही सिखाये मुझे
अब तो आनंद भी खामोशियों में बजता है
उसी का गीत हूँ वो जैसे गुनगुनाये मुझे !
- आनंद
सितम करे तो कोई इस तरह सताए मुझे
न जाने कौन सा ये श्राप है दुर्वासा का
शहर से मेरे वो गुजरे तो भूल जाए मुझे
दर्द की बात पुरानी हुई दुनिया वालों
अब वो रूठे तो बड़ी देर तक हँसाये मुझे
मैं उसका अपना हूँ अक्सर वो बोल देता है
मगर ये बात वो होठों से न बताये मुझे
ज़िंदगी गर कोई मंज़िल है तो मिल जाएगी
हर कदम आज भी चलना वही सिखाये मुझे
अब तो आनंद भी खामोशियों में बजता है
उसी का गीत हूँ वो जैसे गुनगुनाये मुझे !
- आनंद
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.03.2016) को "एक फौजी की होली " (चर्चा अंक-2278)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंBahut sundar...khaaskar antim do panktiyaan.
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