(एक)
सोचता हूँ ओढ़ लूं
किसी की हर चुप्पी
हर इनकार
सोचता हूँ ओढ़ लूं
किसी की हर चुप्पी
हर इनकार
दूरी की हर कोशिश
और हो जाऊँ
उसी की तरह
एकदम सुरक्षित
प्रेम … एक जोखिम तो है ही !
(दो)
एक तरफ जगत की सम्पति
और जगदीश स्वयं
दूसरी तरफ़ केवल तुलसी की एक पत्ती,
तुम्हारा नाम
वही तुलसीदल है,
मैं अपने पलड़े में जो भी रख सकता था
रखकर देख लिया
जैसे ही तुम्हारा नाम आता है
तृण हो जाता है
ये जगत
और मेरा
मैं !
(तीन)
गर्दन दुखने लगती है
आकाश को निहारते ... मगर
नहीं टूटते तारे अब
कोई और जतन बताओ
कि एक आखिरी मुराद माँगनी है मुझे
टूटने वाली चीजें भी
कुछ न कुछ दे ही जाती हैं
मसलन
एक सबक !
(चार)
निपट अकेलेपन में भी
कोई न कोई
साथ होता है,
इंसान के बस में न साथ है
न तनहाई,
बेबस इंसानों से खेलना
न जाने किसका शगल है
जिसे कुछ लोग
लीला कहते हैं !
- आनंद
और हो जाऊँ
उसी की तरह
एकदम सुरक्षित
प्रेम … एक जोखिम तो है ही !
(दो)
एक तरफ जगत की सम्पति
और जगदीश स्वयं
दूसरी तरफ़ केवल तुलसी की एक पत्ती,
तुम्हारा नाम
वही तुलसीदल है,
मैं अपने पलड़े में जो भी रख सकता था
रखकर देख लिया
जैसे ही तुम्हारा नाम आता है
तृण हो जाता है
ये जगत
और मेरा
मैं !
(तीन)
गर्दन दुखने लगती है
आकाश को निहारते ... मगर
नहीं टूटते तारे अब
कोई और जतन बताओ
कि एक आखिरी मुराद माँगनी है मुझे
टूटने वाली चीजें भी
कुछ न कुछ दे ही जाती हैं
मसलन
एक सबक !
(चार)
निपट अकेलेपन में भी
कोई न कोई
साथ होता है,
इंसान के बस में न साथ है
न तनहाई,
बेबस इंसानों से खेलना
न जाने किसका शगल है
जिसे कुछ लोग
लीला कहते हैं !
- आनंद
बहुत सुन्दर भाव । बढ़िया रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना :- मेरी चाहत
गहन भावों का सुंदर चित्रण...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर क्षणिकाएं....
जवाब देंहटाएंसभी लाजवाब!!!
अनु
उस लीला का आनन्द लें यही तो वह चाहता है..निर्बल के बल राम..कहा है न..
जवाब देंहटाएंBhahut sundar bhai jee
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाऎ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाऐ.
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