मेरे ज़ज़्बात से खिलवाड़ को रोका जाए
ये अगर प्यार है तो प्यार को रोका जाए
मैं नहीं कहता कि व्यापार को रोका जाए
पर तिज़ारत से, मेरे यार को रोका जाए
आँख को छीनकर जो, ख़्वाब थमा देता है
वो जालसाज़ इश्तिहार को रोका जाए
कितने बच्चों के निवाले तिजोरियों में मिले
इन गुनाहों से, गुनहगार को रोका जाए
खून में सन गए हैं कुर्सियों के सब पाये
अब जरा जश्न से दरबार को रोका जाए
ढोल दिनरात तरक्की का पीटिये लेकिन
ख़ुदकुशी करने से लाचार को रोका जाए
मुझको उम्मीद है, कुछ लोग तो ये सोचेंगे
एक हद हो, जहाँ बाज़ार को रोका जाए
- आनंद
१४/०२/२०१३
ये अगर प्यार है तो प्यार को रोका जाए
मैं नहीं कहता कि व्यापार को रोका जाए
पर तिज़ारत से, मेरे यार को रोका जाए
आँख को छीनकर जो, ख़्वाब थमा देता है
वो जालसाज़ इश्तिहार को रोका जाए
कितने बच्चों के निवाले तिजोरियों में मिले
इन गुनाहों से, गुनहगार को रोका जाए
खून में सन गए हैं कुर्सियों के सब पाये
अब जरा जश्न से दरबार को रोका जाए
ढोल दिनरात तरक्की का पीटिये लेकिन
ख़ुदकुशी करने से लाचार को रोका जाए
मुझको उम्मीद है, कुछ लोग तो ये सोचेंगे
एक हद हो, जहाँ बाज़ार को रोका जाए
आस ‘आनंद’ की
जिन्दा है, भले कुछ
कम है
कुछ दिनों उस पे नए वार को रोका जाए
- आनंद
१४/०२/२०१३
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 20/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवहा वहा क्या बात है क्या लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
बहुत खूबसूरत अंदाज़ है हर शेर का....
जवाब देंहटाएंऔर उतना ही मुकम्मल भी....!
तल्ख़-जबानी/इंसानी मुलाइमियत दोनों ही मौजूद है....!!
बहुत खूब....
जवाब देंहटाएंहर शेर मुकम्मल....
हर शेर उम्दा......
शुक्रिया दोस्तों !
जवाब देंहटाएंBehtreen....
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