बुधवार, 23 नवंबर 2011

मैं मोहब्बत का चलन क्यों भूलूँ


तेरे मदहोश नयन क्यों भूलूँ
तेरा चंदन सा बदन क्यों भूलूँ

तू मुझे भूल जा तेरी फितरत
मैं तुझे मेरे सनम क्यों भूलूँ

जिस्म  से रूह तक उतर आई
तेरे होंठों की तपन क्यों भूलूँ

आज खारों पे शब कटी लेकिन
कल के फूलों की छुवन क्यों भूलूँ

तुझसे नाहक वफ़ा की आस करूँ
मैं मोहब्बत का चलन क्यों भूलूँ

बन के खुशबू तू बस गया दिल में
अपने अन्दर का चमन क्यों भूलूँ

कितनी शिद्दत से मिला था मुझसे
मैं वो रूहों का मिलन क्यों भूलूँ

ख़ाक होना है मुकद्दर मेरा
तूने बक्शी है जलन क्यों भूलूँ

आनंद द्विवेदी २०-११-२०११

10 टिप्‍पणियां:

  1. कितनी शिद्दत से मिला था मुझसे
    मैं वो रूहों का मिलन क्यों भूलूँ

    ख़ाक होना है मुकद्दर मेरा
    तूने बक्सी है जलन क्यों भूलूँ
    Kya kamaal kee panktiyan hain! Wah!"Baksee' kee jagah "bakshee" likh ke wartanee sudhar len to aur chaar chaand lag jayenge!

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  2. कर लिया सुधार क्षमा जी शुक्रिया !!

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  3. बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।

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  4. बहुत ही उम्दा....दर्द की विवशता ..जो सिर्फ दर्द में जीना जानता है ...

    अब हँस कर तुम ,मेरा प्यार मुझ से ना मांगना
    अधरों पर ला कर नये गीत ,मेरा बेसुध गान मुझ से ना मांगना ||

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  5. ख़ाक होना है मुकद्दर मेरा
    तूने बक्शी है जलन क्यों भूलूँ.....bahut sundar bhaav...

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  6. कुछ भी भूला नहीं जाता..
    सुन्दर भावपूर्ण रचना.

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  7. जिस्म से रूह तक उतर आई
    तेरे होंठों की तपन क्यों भूलूँ

    आज खारों पे शब कटी लेकिन
    कल के फूलों की छुवन क्यों भूलूँ

    niraale sher....umda gazal

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  8. कितनी शिद्दत से मिला था मुझसे
    मैं वो रूहों का मिलन क्यों भूलूँ

    कोई जब इतनी शिद्दत से मिले तो
    भूलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है...!!
    सुन्दर भाव संजोये हैं आपने.....!!!

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