१- मेरा प्यार ...
मैं ..
किसी दूसरे का था
वो..
किसी दूसरे के थे
मगर वो दूसरा भी
किसी दूसरे का था...
जो
उनका था वो कोई
दूसरा ही था ...!
दूसरा ही था ...!
फिर भी वो हमारे थे
हम उनके थे
ऐसा था मेरा प्यार
जैसे .....
आम सहमति पर आधारित
किसी राजनैतिक पार्टी का घोषणा पत्र !!
२- कभी सोंचा है ..?
गरीब का खून
जैसे नीम्बू का रस ..
आखिरी बूँद तक निचोड़ो
और फेंक दो ..
कूड़े के ढेर में ...सूखने के लिए
अब तक तो
पतन हो जाता इस देश का
किन्तु यह टिका है
गरीब के कन्धों पर ....
यह भी कभी सोंचा है ??
--आनंद द्विवेदी २९/०३/२०११
क्षणिकाएं काफी कुछ कह गयी आज की स्तिथि पर... उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत दमदार क्षणिकाएँ , एकदम सटीक | धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंइन क्षणिकाओं को मे चर्चामंच पर रखूंगी शुक्रवार को..
जवाब देंहटाएंआपका मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत है..
अमृतरस
दोनों क्षणिकाएँ एक अलग ही भाव-संसार में ले जाती हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरे भाव !
....बधाई !
द्विवेदी जी ,
जवाब देंहटाएंदोनों क्षणिकाएं बेजोड़ .....मगर दूसरी तो गज़ब की अभिव्यक्त हो रही है |
क्षणिकाएँ बहुत कुछ कह रही है आज की दौर के हिसाब से -- उम्दा
जवाब देंहटाएंपहली बार आपके ब्लॉग पे आया. बहुत ही अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंआपने अपनी क्षणिकाओं द्वारा आज की समाज की हकीकत को बयां किया है.
हार्दिक शुभ कामनाएं आपको...
आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है.
दो अलग अलग भावों से भरी क्षणिकाएं -
जवाब देंहटाएंपहली -पहेली सी और
दूसरी -क्रूर हकीकत .
दोनों अच्छी हैं -
बधाई एवं शुभकामनाएं .
kshanikayen per soch gahri
जवाब देंहटाएंद्विवेदी जी '
जवाब देंहटाएंआपकी विनम्रता और अपनापन प्रणम्य है |
आप में क्षमता है , छंद अवश्य लिखें | थोड़ी बहुत कमी होगी भी तो ब्लाग जगत में स्वतः दूर हो जाएगी |
अब तो सही में सोचने को विवश कर रही है आपकी कविता..... बेहद गहरी व तीखी भावनाओं का मिश्रण है ये.
जवाब देंहटाएंमैं ..
जवाब देंहटाएंकिसी दूसरे का था
वो..
किसी दूसरे के थे
मगर वो दूसरा भी
किसी दूसरे का था...
वाह, अति सुन्दर
आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएं"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"
आपके सुझाव और संदेश जरुर दे!
vandana mahto ji sawai singh ji aapka aabhar !
जवाब देंहटाएंफिर भी वो हमारे थे
जवाब देंहटाएंहम उनके थे
ऐसा था मेरा प्यार
जैसे .....
Vivek Jain http://vivj2000.blogspot.com
आदरणीय आनंद द्विवेदी जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
दोनों क्षणिकाएं विचारणीय !
आदरणीया अनुपमाजी के शब्द चुराऊं तो कहूं -
"पहली -पहेली सी और
दूसरी -क्रूर हकीकत… "
सुरेन्द्र सिंह जी "झंझट" का सुझाव विचारणीय है …
निःसंदेह आप समर्थ रचनाकार हैं चाहे छंद लिखें या मुक्तछंद … !!
नवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं !
साथ ही
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!
*नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*
- राजेन्द्र स्वर्णकार