मंगलवार, 29 मार्च 2011

दो क्षणिकाएं ...

१- मेरा प्यार ...

मैं ..
किसी दूसरे का था 
वो..
किसी दूसरे के थे 
मगर वो दूसरा  भी 
किसी दूसरे का था...
जो 
उनका था वो कोई
दूसरा  ही था ...!
फिर भी वो हमारे थे
हम उनके थे 
ऐसा था मेरा प्यार 
जैसे .....
आम सहमति पर आधारित 
किसी राजनैतिक पार्टी का घोषणा पत्र !!



२- कभी सोंचा है ..?

गरीब का खून 
जैसे नीम्बू  का रस ..
आखिरी बूँद तक निचोड़ो 
और फेंक दो ..
कूड़े  के ढेर में ...सूखने के लिए 
अब तक तो 
पतन हो जाता इस देश का 
किन्तु यह टिका है 
गरीब के कन्धों पर ....
यह भी कभी सोंचा है ??

--आनंद द्विवेदी २९/०३/२०११

16 टिप्‍पणियां:

  1. क्षणिकाएं काफी कुछ कह गयी आज की स्तिथि पर... उम्दा

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  2. बहुत दमदार क्षणिकाएँ , एकदम सटीक | धन्यवाद|

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  3. इन क्षणिकाओं को मे चर्चामंच पर रखूंगी शुक्रवार को..
    आपका मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत है..
    अमृतरस

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  4. दोनों क्षणिकाएँ एक अलग ही भाव-संसार में ले जाती हैं..
    बहुत ही गहरे भाव !
    ....बधाई !

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  5. द्विवेदी जी ,
    दोनों क्षणिकाएं बेजोड़ .....मगर दूसरी तो गज़ब की अभिव्यक्त हो रही है |

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  6. क्षणिकाएँ बहुत कुछ कह रही है आज की दौर के हिसाब से -- उम्दा

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  7. पहली बार आपके ब्लॉग पे आया. बहुत ही अच्छा लगा .
    आपने अपनी क्षणिकाओं द्वारा आज की समाज की हकीकत को बयां किया है.
    हार्दिक शुभ कामनाएं आपको...
    आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है.

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  8. दो अलग अलग भावों से भरी क्षणिकाएं -
    पहली -पहेली सी और
    दूसरी -क्रूर हकीकत .
    दोनों अच्छी हैं -
    बधाई एवं शुभकामनाएं .

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  9. द्विवेदी जी '

    आपकी विनम्रता और अपनापन प्रणम्य है |

    आप में क्षमता है , छंद अवश्य लिखें | थोड़ी बहुत कमी होगी भी तो ब्लाग जगत में स्वतः दूर हो जाएगी |

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  10. अब तो सही में सोचने को विवश कर रही है आपकी कविता..... बेहद गहरी व तीखी भावनाओं का मिश्रण है ये.

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  11. मैं ..
    किसी दूसरे का था
    वो..
    किसी दूसरे के थे
    मगर वो दूसरा भी
    किसी दूसरे का था...

    वाह, अति सुन्दर

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  12. फिर भी वो हमारे थे
    हम उनके थे
    ऐसा था मेरा प्यार
    जैसे .....

    Vivek Jain http://vivj2000.blogspot.com

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  13. आदरणीय आनंद द्विवेदी जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    दोनों क्षणिकाएं विचारणीय !
    आदरणीया अनुपमाजी के शब्द चुराऊं तो कहूं -
    "पहली -पहेली सी और
    दूसरी -क्रूर हकीकत… "
    सुरेन्द्र सिंह जी "झंझट" का सुझाव विचारणीय है …
    निःसंदेह आप समर्थ रचनाकार हैं चाहे छंद लिखें या मुक्तछंद … !!

    नवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं !

    साथ ही

    नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
    पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!

    चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
    संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!

    *नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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