शनिवार, 22 जनवरी 2011

तुम मिलो तो मुझको !



तुम जो रूठे , तो हम मनाएंगे, तुम मिलो तो मुझको !
एक मुद्दत के ग़म  मिटायेंगे,  तुम मिलो तो मुझको !

प्यार तुमने किया सितम की तरह,
बस निभाते रहे,  कसम की तरह ,
कसमें - वादे, सभी निभायेंगे ....!  तुम मिलो तो मुझको !

उन फिजाओं की याद आती है ,
आज भी आँख डबडबाती है ,
तुम मिलोगे... तो मुस्कराएँगे ...!  तुम मिलो तो मुझको !

एक खामोश झील सा जीकर,
थक गया हूँ मैं दर्द पी-पीकर ,
झील में ...हलचलें जगायेंगे ....!  तुम मिलो तो मुझको  !

वो दरख्तों की छाँव कहती है ,
बिन तेरे वो उदास  रहती है ,
फिर वही सिलसिले चलाएंगे ....! तुम मिलो तो मुझको  !

मौत से बस जरा सा, तेज़ चलो,
दो घड़ी पहले , जरा आके मिलो ,
उम्र भर के,  गिले मिटायेंगे   !    तुम मिलो तो मुझको !

    --आनन्द द्विवेदी  २२/०१/२०११

6 टिप्‍पणियां:

  1. आनन्द द्विवेदी जी
    नमस्कार !

    तुम जो रूठे , तो हम मनाएंगे, तुम मिलो तो मुझको !
    अच्छा गीत है , बधाई और शुभकामनाएं !

    शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है ,समय मिले तो आइएगा …

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  2. धन्यवाद राजेंद्र जी , जरूर आऊंगा बंधुवर!

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  3. एक खामोश झील सा जीकर
    थक गया हूँ मैं दर्द पी पी कर
    झील में हलचलें जगायेंगे ...तुम मिलो तो मुझको
    बहुत सुन्दर भावों से सजा सुन्दर गीत !
    मन मगन हो गया |

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  4. धन्यवाद सुरेन्द्र जी आपके पधारने से मेरा मन मगन हो गया सच कह रहा हूँ.!

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  5. तुम जो रूठे , तो हम मनाएंगे, तुम मिलो तो मुझको !
    एक मुद्दत के ग़म मिटायेंगे, तुम मिलो तो मुझको !

    आप कोशिश करते रहिये आंनंद जी जरुर मिलेगी ....!!

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  6. आपके पधारने का और अनमोल टिप्पड़ी करने से अभिभूत हूँ हीर जी शुक्रिया !!

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