मंगलवार, 29 अगस्त 2017

अवसाद

अवसाद
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मुस्कराती तस्वीरों के पीछे छिपी
गहन पीड़ा सा मैं
बार बार खटखटाता हूँ
किसी अदृश्य मृत्यु का द्वार
निष्फल प्रयत्नों का लेखा जोखा इकट्ठा कर रहा है जीवन,
दुनिया तंज़ करती है ...'बस्स' ?
मेरे मुँह से निकलती है बस एक 'आआह्'...

अब दुनिया शिकारी है 
जीवन एक जंगल
जहाँ केवल ताकतवर को ही होती है
जीने की अनुमति,
मृत्यु अब मीडिया की तरह है
शिकारी शिकार करते हुए करेगा
मनोरंजन के अधिकार का उपयोग !
जंगल में मृत्यु केवल एक 'क्षण' है
घटना नहीं,
जंगल में नहीं मिलते किसी क्षण के पाँवों के निशान।

ऐसे में
केवल 'तुम' मुझे बचा सकती हो
पर तुम
कहीं नही हो !

© आनंद

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