बुधवार, 27 अगस्त 2014

मौन विदाई का चुप्पा गीत

ये विदाई की तैयारियों वाली एक औसत शाम थी, जिसमें बातें कम थीं, ख़ामोशी ज्यादा; दर्द उससे  भी ज्यादा
दो सच्चे दिल, मगर अलहदा रास्तों के मुसाफ़िर ....
एक ने नज़रें उठाकर कहा
अपना ख़याल रखना
दूसरे ने नज़रें झुकाकर पूछा … "मगर किसके लिए"
अपने लिए …और किसके लिए (पहले ने लगभग डाँटने वाले अंदाज में कहा )
जैसे तुम रखते हो ?
(दूसरे ने पूछना चाहा था मगर पूछ नहीं सका )
हालाँकि वो जिंदगी भर बक बक करता रहा मगर ये बात नहीं पूछ पाया कि
अपना ख्याल रखना इतना जरूरी क्यों होता है
क्यों लोग अपना ख्याल रखने के लिए दूसरों का ख्याल ही नहीं रखते
मगर वह ....
बस इतना ही कह सका
कभी मन करे तो बात कर लेना
मैं अब बहुत परेशान नहीं करूँगा ...
_________________________


- आनंद






4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-08-2014 को मंच पर चर्चा - 1719 में दिया गया है
    आभार

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  2. Apana khayal rakhana ... adbhut , sahaj kintu andekha sach , roj isi tarah kitani baar jivan swayam ko udghaatit kar nikal jaataa hai aur ham pakad nahi paate ... aabhaar !

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  3. दिल को छूती भावपूर्ण रचना...

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  4. आपकी ग़ज़लों सी ही लगी यह लघुकथा भी

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