मै यह न मान सकूंगा
की प्रेम भरे पेट का तमाशा है
मेरी अम्मा
बासी रोटी खाती थी कई बार वह भी नहीं होती थी
छातियों में दूध नहीं होता था फिर भी मैं लटका रहता था
बेबसी में भी नहीं दुत्कारती थी मुझे
बप्पा पर खीझते उमर बीती उनकी
बप्पा खाते थे चार मोटी मोटी पनेथी एक बार में
और रहते थे मस्त
घर में क्या है क्या नहीं है ..है तो कैसे और कहाँ से आया बप्पा से नहीं था मतलब
आश्चर्य होता है कि डेढ़ हड्डी की माँ कैसे करती थी इतना सब
कुटना, पिसना, झाड़ू, बहारू, चारा, पानी
और जहाँ आँगन की मिट्टी जरा भी कहीं से खुदे ...लीपने बैठ जाती थी सारा घर
गाँव में आये दिन बोलउवा ...
अम्मा रखती थीं बोलउवा में जाने के लिए तंजेब की एक विशेष चद्दर जिसे 'पिछउरी' कहती थी वो
कभी 'सकठ' के लड्डू ... तो कभी 'दुरदुरैया' की पूजा
कभी 'गउनई'
हर काम समय पर
आज सोचता हूँ तो असंभव सा लगता है
लड़के के बड़े होने की आस में काट दिया हर दुःख,
उन्हें
न पति से सुख मिला न ही बेटे से ...
आश्चर्य है कि अम्मा फिर भी नहीं रहीं कभी मेरी आदर्श
जबकि वो थीं
अम्मा ! कुछ साल और रुक जाती तुम ...
आज एयरकंडीशन में सोते हुए
तुम्हारी पसीने से भीगी देह की गंध बहुत याद आती है
और याद आता है रोज़ दोपहर को तुम्हारे हाथ का बना खाना
सच्ची अम्मा
तुम्हारे बाद एक बार भी नही खाया 'सेंउढ़ा'
न ही जोंधरी की रोटी ।
(सेंउढ़ा = बरसात की ऋतु का एक विशेष व्यंजन जिसे अरबी के पत्तों पर बेसन और मसाले का मिश्रण लपेट कर फिर रोल बनाकर तला जाता है )
जोंधरी = ज्वार
की प्रेम भरे पेट का तमाशा है
मेरी अम्मा
बासी रोटी खाती थी कई बार वह भी नहीं होती थी
छातियों में दूध नहीं होता था फिर भी मैं लटका रहता था
बेबसी में भी नहीं दुत्कारती थी मुझे
बप्पा पर खीझते उमर बीती उनकी
बप्पा खाते थे चार मोटी मोटी पनेथी एक बार में
और रहते थे मस्त
घर में क्या है क्या नहीं है ..है तो कैसे और कहाँ से आया बप्पा से नहीं था मतलब
आश्चर्य होता है कि डेढ़ हड्डी की माँ कैसे करती थी इतना सब
कुटना, पिसना, झाड़ू, बहारू, चारा, पानी
और जहाँ आँगन की मिट्टी जरा भी कहीं से खुदे ...लीपने बैठ जाती थी सारा घर
गाँव में आये दिन बोलउवा ...
अम्मा रखती थीं बोलउवा में जाने के लिए तंजेब की एक विशेष चद्दर जिसे 'पिछउरी' कहती थी वो
कभी 'सकठ' के लड्डू ... तो कभी 'दुरदुरैया' की पूजा
कभी 'गउनई'
हर काम समय पर
आज सोचता हूँ तो असंभव सा लगता है
लड़के के बड़े होने की आस में काट दिया हर दुःख,
उन्हें
न पति से सुख मिला न ही बेटे से ...
आश्चर्य है कि अम्मा फिर भी नहीं रहीं कभी मेरी आदर्श
जबकि वो थीं
अम्मा ! कुछ साल और रुक जाती तुम ...
आज एयरकंडीशन में सोते हुए
तुम्हारी पसीने से भीगी देह की गंध बहुत याद आती है
और याद आता है रोज़ दोपहर को तुम्हारे हाथ का बना खाना
सच्ची अम्मा
तुम्हारे बाद एक बार भी नही खाया 'सेंउढ़ा'
न ही जोंधरी की रोटी ।
(सेंउढ़ा = बरसात की ऋतु का एक विशेष व्यंजन जिसे अरबी के पत्तों पर बेसन और मसाले का मिश्रण लपेट कर फिर रोल बनाकर तला जाता है )
जोंधरी = ज्वार
yaadon ke ek-ek kshn ko shbdon men goontha hai
जवाब देंहटाएंvaasatv men maa se bda koyee adrsh nhi ho skta.
शुक्रिया धीरेन्द्र जी !
जवाब देंहटाएं'अम्मा! कुछ साल और रूक जाती तुम...'
जवाब देंहटाएंआँखें नम करती भावनाएं...
जाने कहाँ चले जाते हैं लोग!