तुम से मिली उपेक्षा से चिढ़कर
बहुत सारी बुराइयाँ आ बैठीं मुझमे
और जितनी भी अच्छाइयाँ हैं मेरे अंदर
वह सब की सब तुम्हारी हैं
बात बात में टोकना तुम्हारा
मैं झुंझला जाता था भले प्रकट नहीं करता था
पर तुम इस सबसे अंजान
बना रही थी
एक इंसान अपनी सोंचो के अनुरूप
आवरण और अहं विहीन
नतीजा आने तक तो रुकते तुम ...
तुम्हें किंचित भय था
इस राह से वापस न लौट जाऊं मैं बिना किसी सहारे के
पाकर खुद को अकेला
मगर
कहाँ जाऊं लौट कर
दुनिया जो पीछे छूट गयी है उसमें ?
अर्थहीन हो चुके संबंधों में ?
या फिर शब्दों और चेहरों की रेलमपेल में ?
आश्वस्त हो जाओ
मुझे अब पीछे मुड़कर देखना भी अजीब लगता है
खो गया है कहीं मेरा होना
जिसे नहीं ढूँढना चाहता मैं दुबारा
मैंने पार कर लिया है
वह चौराहा
जिस पर लाकर छोड़ा था तुमने
छोड़ आया हूँ पीछे वो सब जो मैं जानता था
आगे कुछ भी पहले से जाना हुआ नहीं है
अब तो हालात यह है कि
अगर कोई अगरबत्ती न जलाए
तो मुझे
महीनों तुम्हारी याद भी न आये
आँसू और सुगंध
नहीं नहीं
पानी और हवा
मुझे आज भी चाहिए जीने के लिये |
- आनंद
९/१०/१२
यादों का सफर अभी भी जारी है
जवाब देंहटाएंआज 14-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं.... आज की वार्ता में ... हमारे यहाँ सातवाँ कब आएगा ? इतना मजबूत सिलेण्डर लीक हुआ तो कैसे ? ..........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
खूबसूरत एहसास ...
जवाब देंहटाएं"आँसू और सुगंध
जवाब देंहटाएंनहीं नहीं
पानी और हवा
मुझे आज भी चाहिए जीने के लिये |"
बहुत खूब...|
अब तो हालात यह है कि
जवाब देंहटाएंअगर कोई अगरबत्ती न जलाए
तो मुझे
महीनों तुम्हारी याद भी न आये
:) यही होता है
अपने अंतर्मन की व्यथा को सटीक शब्दों में प्रस्तुत करती सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंअब तो हालात यह है कि
जवाब देंहटाएंअगर कोई अगरबत्ती न जलाए
तो मुझे
महीनों तुम्हारी याद भी न आये..!!
क्या भाव हैं आनंद...!!
फिर भी जीने के लिये पानी और हवा चाहिए न....|