ऐ ख्वाब तेरी ये अदा भी, भा गयी मुझे
वो सामने थे और नींद आ गयी मुझे
पल भर को मेरी आँख तेरी राह से हटी
जाने कहाँ से तेरी याद आ गयी मुझे
कुछ इश्क़ ने सताया कुछ जिन्दगी ने मारा
आख़िर को एक दिन तो मौत आ गयी मुझे
मैं आम आदमी हूँ आज़ाद तो हुआ था
पर हाय ये जम्हूरियत ही खा गयी मुझे
तू जिंदगी है फिर तो जिन्दगी की तरह मिल
बन के भला रकीब, क्यों मिटा गयी मुझे
तेरे महल से चलकर 'आनंद' की गली तक
तेरी दुआ सलामत पहुंचा गयी मुझे
-आनंद
११ जून २०१२ !
लाज़बाब.....
जवाब देंहटाएंवाह!!!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल आनंद जी.
अनु
बढ़िया ग़ज़ल..
जवाब देंहटाएंतू जिंदगी है फिर तो जिन्दगी की तरह मिल
जवाब देंहटाएंबन के भला रकीब क्यों मिटा गयी मुझे
Kya baat hai..Waah...
मैं आम आदमी हूँ आज़ाद तो हुआ था
जवाब देंहटाएंपर हाय ये जम्हूरियत ही खा गयी मुझे
वाह क्या बात है ॥बहुत खूब
आप सभी मित्रों का हार्दिक आभार !
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