फिर अदावत निभा गयी होली ,
खुद जली, दिल जला गयी होली !
रंग बरसा न फुहारें बरसीं ,
टीस मन में जगा गयी होली !
दर्द के श्याम, पीर की राधा,
रंग ऐसा दिखा गयी होली !
राह तकता रहा अबीर लिए ,
वो न आये, क्यूँ आ गयी होली ?
उम्र भर तुम भी जलो, मेरी तरह
बोलकर यह सजा गयी होली !
वाह 'आनंद' की किस्मत देखो ,
दर्द को कर दवा गयी, होली !!
--आनंद द्विवेदी
Anand ji aap bahut umda likhte hain,
जवाब देंहटाएंBadhai sweekaar karen.
Shukriya neelam ji !
जवाब देंहटाएंदर्द के श्याम, पीर की राधा,
जवाब देंहटाएंरंग ऐसा दिखा गयी होली !
राह तकता रहा अबीर लिए ,
वो न आये, क्यूँ आ गयी होली ?
Aah! Itna dard!!
हाँ क्षमा जी ऐसा ही कुछ है ....धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं'उम्र भर तुम भी जलो मेरी तरह
जवाब देंहटाएंबोलकर यह सजा गयी होली '
हर शेर बेहतरीन ......दर्द छलक रहा है , यही रचना की सार्थकता है |
holi to pighlati hai, bhigati hai.... .......bhaiya!! aapne to jalne ki baat kar di...:) holi ke rang to hame khushiyon se sarabor karne ke liye hoti hai................par aap to aap ho!! dard ke jadugar!! itna na dard ko kuredoo ki dard bhi hasne lage...:D
जवाब देंहटाएंसुरेन्द्र भाई जी ,,,बहुत बहुत धन्यवाद ! और मुकेश मेरे भाई आपके पधारने से ही मैं कृतकृत्य हो गया हूँ और क्या कहूं ?
जवाब देंहटाएंरंग बरसा न फुहारें बरसीं ,
जवाब देंहटाएंटीस मन में जगा गयी होली !
दर्द के श्याम, पीर की राधा,
रंग ऐसा दिखा गयी होली !.....
बहुत सुन्दर शेर...बहुत सुन्दर भावपूर्ण ग़ज़ल...
हार्दिक शुभकामनाएँ !!
डा. शरद जी !...आप जैसी शख्सियत का अकिंचन के ब्लोग पर पधारना ही अपने आप में महत्वपूर्ण है....ग़ज़ल भी पसंद आई तब तो मनो सोने पर सुहागा!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार !
बेहतरीन अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंबधाई भैया !