अपनों से मिला है न ज़माने से मिला है
ये ग़म मुझे उम्मीद लगाने से मिला है
जलने का तज़ुर्बा भी बड़ी चीज़ है यारों
मुझको हवन में हाथ जलाने से मिला है
किसको फ़िकर है दर्द की, सब पूछते हैं ये
किसकी गली से किसके ठिकाने से मिला है
रिसता न गर लहू तो कोई जान न पाता
क्या ज़ख्म लिए कौन ज़माने से मिला है
बौछार दुआओं की रही मुँह के सामने
ये घाव जरा पीठ घुमाने से मिला है
शिद्दत से पुकारो जिसे वो शख्स बारहा
मिलने की आरजू ही मिटाने से मिला है
'आनंद' शबे-ग़म से नसीमे-सहर को चल
मौका तुझे ये नींद न आने से मिला है !
-आनंद
ये ग़म मुझे उम्मीद लगाने से मिला है
जलने का तज़ुर्बा भी बड़ी चीज़ है यारों
मुझको हवन में हाथ जलाने से मिला है
किसको फ़िकर है दर्द की, सब पूछते हैं ये
किसकी गली से किसके ठिकाने से मिला है
रिसता न गर लहू तो कोई जान न पाता
क्या ज़ख्म लिए कौन ज़माने से मिला है
बौछार दुआओं की रही मुँह के सामने
ये घाव जरा पीठ घुमाने से मिला है
शिद्दत से पुकारो जिसे वो शख्स बारहा
मिलने की आरजू ही मिटाने से मिला है
'आनंद' शबे-ग़म से नसीमे-सहर को चल
मौका तुझे ये नींद न आने से मिला है !
-आनंद
जय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 30/08/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति मेजर ध्यानचन्द और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह !!!
जवाब देंहटाएंयक़ीनन किसी की दुआओं का सिला है
बेवजह आंख छलकाने को'आनंद'मिला है