बदले तो हैं वो
इन दिनों रखते हैं ख़ास ख़याल
जैसे कोई अनुभवी चिकत्सक पकड़ता है
हौले से मरीज़ की नब्ज़
इन दिनों रखते हैं ख़ास ख़याल
जैसे कोई अनुभवी चिकत्सक पकड़ता है
हौले से मरीज़ की नब्ज़
पल भर में भांप लेता है उसका स्वास्थ्य
आश्वस्त हो पूछता है हालचाल
देता है जरुरी हिदायतें
और चला जाता है उधर ही जिधर से आया था
मरीज़ फिर करने लगता है इंतज़ार
एक और कल का
प्रेम ...
इंतज़ार की आंच पर पक रही
इंतज़ार की आंच पर पक रही
अनेक काल्पनिक स्वादों वाली
बीरबल की खिचड़ी है !
- आनंद
आपकी कविता भेदती है
जवाब देंहटाएंpal bhar ki upasthiti khichdi ko kitna swadisht bana deti hai.... bilkul tumhari kavita ki tarah...yummmm
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