शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

अकथ

मैंने कह दिया,
लेकिन
कह पाया
केवल खुद को
नहीं नहीं
खुद की इच्छाओं को,

अकथ
आज भी
नहीं कहा जा सका मुझसे
मैं ये क्या कह रहा हूँ
और क्यों ?

पर... क्या मैं
कह रहा हूँ ये सब,
मैं तो तुम हो गया हूँ
प्रियतम

ये कहना भी
अर्चन है तुम्हारा
मेरे मंदिर के घंटियों की ध्वनियाँ
इन्हें  बेतरतीब ही
स्वीकार लो !

- आनंद  

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