सुबह उगते हुए सूरज को देखना
देखना ओस की कोई अकेली बूँद
खय्याम की रुबाई से रूबरू होना
या फिर गुनगुनाना मीर की ग़ज़ल
आफिस की मेज़ को बना लेना तबला
और पल भर को जी लेना बचपन
ऐसा ही कुछ कुछ है तुम्हारा अहसास
जिसे ठीक से कह पाना असंभव
कभी सुनो मेरे ठहाकों में खुद को
कभी पढ़ो मेरे आँसुओं में अपनी कविता
कि ढूंढो मेरे अंधेरो में अपनी छाया
और लहलहाओ मेरे मौन में
बनकर सरगोशियों की फ़सल
मुद्दत से तुम्हें कहने की कोशिश में हूँ
मगर एक भी उपमा नहीं भाती मन को
रह जाते हो तुम हमेशा ही अकथ
जैसे अनकही रह गयी मेरी वेदना
जैसे अनलिखी रह गयी मेरी कविता
जैसे अनछुआ रह गया एक फूल
जैसे अनहुआ रह गया मेरा प्रेम
कि जैसे अनजिया बीत गया एक जीवन
सुनो !
कहीं तुम भी
किसी का जीवन तो नहीं ?
- आनंद
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंभावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........
जवाब देंहटाएंअनकही सी भावनाएं जो सब समेटे हैं......
जवाब देंहटाएंअनकही सी भावनाएं जो सब समेटे हैं......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर! बहुत कोमल रचना ....
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
simply superb.Nice one . Thanks for sharing.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत एहसास
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