आनंद
एक 'आनंद' वहाँ भी है जहाँ बेवजह आँख छलछला जाये !
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हाइकु
सोमवार, 31 दिसंबर 2012
पीर पराई ...
एक पखवारा
बहुत होता है किसी अनुष्ठान के लिये
बहुत दिन हो गए
तुम्हें समाज सुधारक बने हुए
जाओ
नकाबें उतार दो अब
रात के जश्न में मिलते हैं बाय !
- आनंद
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