शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

प्यार औ सरकार दोनों की रवायत एक है

शायरी में भर रहे थे एक मयखाने  को हम
अब ग़ज़लगोई करेंगे होश में आने को हम

कौन चाहे  मुल्क  का चेहरा बदलना दोस्तों
भीड़ में शामिल हुए हैं सिर्फ चिल्लाने को हम

देखिये लबरेज़ हैं दिल इश्क से कितने, मगर
मार देंगे 'जाति' से बाहर के दीवाने को हम

एक भी दामन नहीं जो ज़ख्म से महफूज़ हो
रौनकें लाएँ कहाँ से दिल के बहलाने को हम

प्यार औ सरकार दोनों की रवायत एक  है
रोज खायें चोट पर मज़बूर सहलाने को हम

इन दिनों 'आनंद' की बातें बुरी लगने लगीं
भूल ही जाएंगे इस नाकाम बेगाने  को हम

- आनंद
26/10/2012




7 टिप्‍पणियां:

  1. कौन चाहे मुल्क का चेहरा बदलना दोस्तों
    भीड़ में शामिल हुए हैं सिर्फ चिल्लाने को हम

    देखिये लबरेज़ हैं दिल इश्क से कितने, मगर
    मार देंगे 'जाति' से बाहर के दीवाने को हम

    सटीक बात काही है इन शेरों में ... खूबसूरत गज़ल ॰

    जवाब देंहटाएं
  2. सटीक और सार्थक वर्तमान पर तीखा कटाक्ष ,आभार |

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह....
    एक भी दामन नहीं जो ज़ख्म से महफूज़ हो
    रौनकें लाएँ कहाँ से दिल के बहलाने को हम
    बहुत बढ़िया गज़ल....

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  4. क्या बात है ....आज कल सरकार आपके निशाने पर हैं .......बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  5. एक भी दामन नहीं जो ज़ख्म से महफूज़ हो
    रौनकें लाएँ कहाँ से दिल के बहलाने को हम
    क्या बात है.बहुत सुन्दर गज़ल....आभार

    जवाब देंहटाएं