जिंदगी कुछ सिखाती रही उम्र भर
एक मिसरा ग़ज़ल का नहीं बन सकी
जाने क्या बुदबुदाती रही उम्र भर
जिस जगह से मैं भागा उसी बिंदु पर
मुझको लेकर के आती रही उम्र भर
इश्क़ की राह को मन मचलता कभी
मुझको रोटी पे लाती रही उम्र भर
मेरे माथे पे संघर्ष गोदवा दिया
फिर मुझे आजमाती रही उम्र भर
जख़्म रिसते रहे दर्द बहता रहा
जिंदगी छटपटाती रही उम्र भर
मैं बुरा था बुरा ही रहा हर कदम
ये हक़ीकत छिपाती रही उम्र भर
एक टुकड़ा खुशी का नहीं दे सकी
बस पहाड़े पढ़ाती रही उम्र भर
नाम 'आनंद' था सो मेरे नाम की
रोज खिल्ली उड़ाती रही उम्र भर।
© आनंद
जिंदगी तो कोरे कागज की तरह मिलती है, जिस पर जो जिसको भला लगता है वही लिखता जाता है
जवाब देंहटाएंमैटर सलेक्ट नहीं हो रहा है। ताला खोलिए ब्लॉग का।
जवाब देंहटाएंताला चोरों के लिए नहीं होता है मान्यवर!
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी ज़िन्दगी मैं जो कहता गया
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी मुस्कुराती रही उम्र भर
बहुत खूब !!
बहुत खूब ...... सब कुछ बयाँ कर दिया।।
जवाब देंहटाएंजिंदगी क्या-क्या रंग दिखाती हैं कोई नहीं जानता, कितने मोड़ो से गुजरती है और कहाँ रूककर फिर आगे बढ़ जाती हैं, कौन जानता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति