जो कुछ था सब हारे ही क्यों
उसकी राह निहारे ही क्यों
ठौर न कोई और मिला क्या
उसके गाँव दुआरे ही क्यों
जब हिस्से का दो ग़ज तय था
ज्यादा पाँव पसारे ही क्यों
मन के जख़्म कौन भर देगा
सबसे बदन उघारे ही क्यों
जब नदिया जल भर बहती थी
बैठे रहे किनारे ही क्यों
आई याद, दर्द होगा ही
कितना रहो बिसारे ही क्यों
ओ 'आनंद' पूँछ तो उससे
यह सब साथ हमारे ही क्यों
© आनंद
वाह! बेहद उम्दा ग़ज़ल, अंतिम अश्यार में संभवतः आपको 'पूछ' लिखना था पूँछ नहीं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं