शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017

उसी किरदार में अटका हुआ हूँ

दरो दीवार में अटका हुआ हूँ
अभी संसार में अटका हुआ हूँ

किसी ग़ुल ने लुटा दी जिंदगानी
मैं अब तक ख़ार में अटका हुआ हूँ

वो मेरी रूह से सटकर खड़ी है
मैं बस सिंगार में अटका हुआ हूँ

किसी का हाथ अब तक हाथ में है
इसी त्योहार में अटका हुआ हूँ

यहाँ है डूबना ही पार जाना
मगर मँझधार में अटका हुआ हूँ

अधूरी ख्वाहिशों का पीर हूँ मैं
ग़म-ओ-आज़ार में अटका हुआ हूँ

वो करके क़त्ल फिर से म्यान में है
मैं जिसकी धार में अटका हुआ हूँ

मुसलसल फ़क्कड़ी है इश्क़ यारों
मैं लोकाचार में अटका हुआ हूँ

अभी 'आनंद' से मिलना हुआ है
उसी किरदार में अटका हुआ हूँ

© आनंद

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