रविवार, 12 अक्टूबर 2014

जिन निगाहों में सिर्फ़...

जिन निगाहों में सिर्फ़ आंसू थे उन निगाहों को ख़्वाब भेजे हैं
बाद मुद्दत के किसी ने मुझको, सुर्ख ताज़े गुलाब भेजे हैं

इश्क़ के, वस्ल के, जुदाई के, जिंदगी के, वफ़ा के, रिश्तों के
जाने कितने सवाल थे मन में, उसने सबके जबाब  भेजे है

रंग भेजे हैं रूह की खातिर, घूप भेजी है ज़िस्म ढकने को
छीन वीरानियों को, बदले में, उम्र को फिर शबाब भेजे हैं

कुछ भरोसे निबाह के लायक, मुतमइन ज़िंदगी को भेजे हैं
मेरी तन्हाइयों के मद्देनज़र, अपने हमशक्ल ख़्वाब भेजे हैं

एक पैगाम मिला कासिद से, ग़म की राहों पे पाँव मत रखना
सिर्फ़ 'आनंद' में मिलेगा वो,  क्या गज़ब इंतिखाब भेजे  हैं  !

- आनंद







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