आनंद
एक 'आनंद' वहाँ भी है जहाँ बेवजह आँख छलछला जाये !
बुधवार, 26 अक्टूबर 2011
प्रेम ..!
क्या कहूँ या लिखूं ..
अब तक
जो जाना था
कोई रूचि नहीं
अब उसमे ...
जो बरस रहा है
'इस पल' में
पहले उसे जी लूं
उसे पी लूं
लिखता रहूँगा ग्रन्थ
बाद में
हाँ
अगर एक शब्द में
लिखी कविता
समझ सकते हो
तो लो
लिख देता हूँ
प्रेम !!
आनंद द्विवेदी ....२४/१०/२०११
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें