१९९२ की गर्मियों का लिखा गीत लगभग विस्मृत हो गया था ...कल अचानक हाथ लगा तो ऐसा लगा जैसे कोई फिक्स डिपाजिट मेच्योर हुआ पड़ा हो और हमें खबर भी न हो.... खैर आज से लगभग २० साल पहले का सौन्दर्य बोध ...आपके समक्ष है.....है कैसा ये आप जानें !
तुम चन्दन वन के समीर सी
झोंका बन बस गयी हिया में ,
भीनी खुसबू, निश्छल यौवन
वह अनुपम सौंदर्य जिया में !
कोटिक कोकिल कंठों का
कलरव, तेरी उन्मुक्त हंसी है,
तेरी अनुपम केशराशि में
ज्यों सावन की घटा बसी है
सुधा सोम युत तेरे मादक,
नयनों का रसपान किया मैं !....
तुम चन्दन वन के समीर सी, झोंका बन बस गयी हिया में !
नूतन तरु कोंपल सी कोमल
शीतलता में शरद जुन्हाई ,
मन के बंद कपाट खोलकर
तेरी छवि मन में गहराई ,
मीठे सपनों के आँगन में
उन यादों के साथ जिया मैं !.....
तुम चन्दन वन के समीर सी, झोंका बन बस गयी हिया में !
शुभ्र हिमालय से ज्यादा तुम
सागर से भी अधिक गहनतम,
तेरी चितवन में जीवन है
स्वर तेरा वीणा की सरगम,
तेरी सुधि के साथ बैठकर
निठुर ठिठोली बहुत किया मैं !.....
तुम चन्दन वन के समीर सी, झोंका बन बस गयी हिया मे
भीनी खुसबू, निश्छल यौवन वह अनुपम सौंदर्य जिया में !
-- आनंद द्विवेदी
'शुभ्र हिमालय से ज्यादा तुम
जवाब देंहटाएंसागर से भी अधिक गहनतम
तेरी चितवन में जीवन है
स्वर तेरा वीणा की सरगम '
आदरणीय द्विवेदी जी ,
बहुत मनमोहक और प्यारा प्रेम गीत है
स्नेही बंधु सुरेन्द्र जी ! सादर नमस्कार और ह्रदय से आभार कि आपको रचना पसन्द आयी !
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhibykti
जवाब देंहटाएंhardik badhai....
Shubhro Himalayer Beshi Tumi
जवाब देंहटाएंSagarer Cheye Beshi Gohonotom
Tomar Chitrobone Jibon Achhe
Swor Tomar Beenar Sorgom