आनंद
एक 'आनंद' वहाँ भी है जहाँ बेवजह आँख छलछला जाये !
सोमवार, 24 अगस्त 2015
चींटी और पहाड़
मैं आज भी वही हूँ
तुम्हें अपना भगवान मानता हुआ
सहज स्वतंत्र
,
बंधन हीन
,
अपने मन का
,
बेपरवाह
कौतुकी
,
मायामय
,
सबकुछ खेल समझने वाला
अलभ्य अगम्य किन्तु प्रिय
,
तुम आज भी वही हो
पाषाण !
-
आनंद
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें