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शुक्रवार, 23 नवंबर 2012
रंगमंच
एक नाटक में
मुझे पति का किरदार मिला
तुम्हें पत्नी का
दोनों खरे नही उतरे
वैसे तुम
जब भी माँ का किरदार करती हो
गज़ब जान डाल देती हो
और पिता का रोल तो मैं भी ठीक ठाक निभा लेता हूँ
और पिता का रोल तो मैं भी ठीक ठाक निभा लेता हूँ
एक बार प्रेयसी का रोल करो ना
तुम्हें इस किरदार में देखना
मेरी गिनी चुनी अधूरी इच्छाओं में से एक है !
मैं जानता हूँ
मेरी गिनी चुनी अधूरी इच्छाओं में से एक है !
मैं जानता हूँ
जिंदगी के इस रंगमंच पर
न तुम्हारी इच्छा कोई मायने रखती है
और न ही मेरी
वैसे भी नाटक में पात्रों का निर्धारण
पात्रों की इच्छा पर नही
निर्देशक की इच्छा पर होता है
अब देखो न
तुम मुझे राम के किरदार में देखना चाहती थी
मगर मुझे मिला 'रमुआ' का
ठीक वैसे ही ..जैसे
मैं तुम्हें गांधारी के किरदार में देखना चाहता
था
पर तुम्हें मिला
'अम्बा' का |
जब भी नाटक का पटाक्षेप होगा
पात्र नहीं
अभिनय याद किया जाएगा
आओ हम दोनों
अपने अपने किरदारों को जीवंत करे
अपने अपने किरदारों को जीवंत करे
क्योंकि
यही हमें करना है !!
- आनंद
२२ मई २०१२ !