रविवार, 2 जून 2013

आज से हर ज़ख्म दुनिया की नज़र हो जाएगा

आज से हर ज़ख्म दुनिया की नज़र हो जाएगा
कारवाँ अपना, ग़ज़ल का हमसफ़र हो जायेगा

ठोकरों पर ठोकरें, फिर ज़ख्म उस पर बेरुख़ी
क्या ख़बर थी एक दिन ऐसा असर हो जायेगा

मिल गए हैं पंख, मेरी पीर को  परवाज़ को
देखना अब आसमाँ भी मुख़्तसर हो जायेगा

पत्थरों का नाम लेंगे लोग तेरे नाम पर
आशना तुझसे ज़माना इस क़दर हो जाएगा

छोड़कर खेती किसानी नात-रिश्ते, आ गए
और क्या होगा शहर में एक घर हो जायेगा

क्या बताऊँ, क्यों ग़ज़लगोई हुई, सोचा न था
आँख का पानी दिखा देना,  हुनर हो जायेगा

जाते जाते एक टुकड़ा मुस्कराहट आपको
ख़्वाब है 'आनंद' का पूरा अगर हो जायेगा

- आनंद







3 टिप्‍पणियां: